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  • पढिए! महान शिवाजी राजा के पुत्र संभाजी राजे की अद्भुत बुद्धि की गाथा।
    किसी भी व्यक्ति का प्रचंड ज्ञान उसकी अद्भुत, विचक्षण एवं विलक्षण बुद्धि का द्योतक है।
    चलिए आपको लेकर चलते हैं संभाजी शिवाजी भोसले की दुनिया में।
    जी हां , दोस्तों शिवाजी महाराज से बहुत सारे लोग परिचित हैं। उनके महान व्यक्तित्व ,उनके महान कार्य से काफी सारे लोग प्रभावित हैं I
    लेकिन बहुत कम लोग संभाजी महाराज के बारे में जानते हैं और उनका विशाल ज्ञान का सागर जो उन्होंने बिल्कुल कम आयु में बनाया था।
    ज्ञान पाने का बहुत बड़ा साधन ,भाषाओं को जानना है। अतः ज्ञान पाने के लिए प्रथम भाषा सिखनी जरूरी हैं।
    2 वर्ष की आयु में ही उनकी माता का निधन हो गया फिर भी हिम्मत ना हारते हुए उन्होंने अपने विलक्षण बुद्धि से एक आदर्श राजा होने के नाते जो जो गुण चाहिए वह अपनी दादी मां यानी कि श्री जीजा माता जी के दिशा निर्देश के हिसाब से प्राप्त किया। एक दूरदर्शी व्यक्तित्व होने की वजह से श्री जीजा माता जी ने शंभूराजे को प्रचलित सभी भाषाओं का पंडित बनाया ताकि वह सभी दिशाओं से और सभी भाषाओं से ज्ञान अर्जित कर सकें एवं सभी प्रकार के भाषा के व्यक्तियों के साथ संपर्क बना सके। और यह एकमात्र विलक्षण बुद्धि वाले बालक के लिए ही संभव था कि वह इतनी कम आयु में इतनी सारी भाषाओं पर प्रभुत्व प्राप्त कर सकें।
    आपको शायद यह जानकर के आश्चर्य होगा कि उन्होंने अल्प आयु में ही उस जमाने में 8 भाषाओं पर प्रभुत्व प्राप्त किया था। वे भाषाएं थी संस्कृत ,मराठी ,पारसी ,अरबी ,ब्रज, उर्दू हिंदी और अंग्रेजी ।
    उनके जीवन में साहस और असाधारण बहादुरी के साथ साथ प्रतिभाशाली साहित्यकार का गुण भी था।
    उन्होंने ना मात्र भाषाएं सीखी लेकिन उसका योग्य उपयोग किया एवं उस भाषाओं से सुंदर रचनाएं भी निर्माण की l
    उनकी रचनाओं में संस्कृत भाषा में लिखा गया बुधभूषण प्रसिद्ध है, उनका संस्कृत दान पत्र भी प्रसिद्ध है। जबकि ब्रज में ' नाइकाभेद ’, 'नखशिख' ’और 'सातसतक’ प्रसिद्ध है।
    एक बच्चे के रूप में, वह कवि कलश, महाकवि भूषण, गागाभट्ट , केशव पंडित जैसे विद्वानों के संपर्क में आए और उनके पिता छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रेरणादायक नेतृत्व से प्रभावित थे।
    जहां आज साधारण व्यक्ति को संस्कृति समझ नहीं आती वहां शंभू महाराज जी ने संस्कृत भाषा में पुस्तक लिखी वह भी काव्य स्वरूप में।
    चलिए आपको बुधभूषण की विशेषताएं बताते हैं।
    उन्होंने पुस्तक के आरंभ में शाहजी राजे, छत्रपति शिवाजी राजे की प्रशंसा की है। इसमें तीन अध्याय हैं जो राजनीति, राज्य प्रणाली, कर्तव्यों, मंत्रिमंडळ आदि से संबंधित हैं।
    यह संपूर्ण पुस्तक काव्य स्वरूप में लिखी गई है !
    यह पुस्तक शंभू महाराज द्वारा 14 वर्ष की आयु में निर्मित की गई थी। इससे स्पष्ट है कि वे सुसंस्कृत और उच्च शिक्षित थे।
    बुधभूषण की पुस्तक में उनके पिता शिवाजी राजे और दादा शाहजी राजे की बहुत ही सुंदर और आलंकारिक भाषा में प्रशंसा की गई है।
    चलिए आपको इसमें से कुछ अंश बताते हैं जिससे आप भी आप मान कर रहेंगे कि कितनी विचक्षण, विलक्षण और तीव्र बुद्धि शंभू महाराज की थी।
    शिवाजी राजे की प्रशंसा –
    कलिकालभुजंगमावलीढं निखिलं
    धर्मवेक्ष्य विक्लवं य: ।
    जगत: पतिरंशतोवतापो: (तीर्ण:)
    स शिवछत्रपतिजयत्यजेय: ॥
    अर्थ-- "कलिकालारूपी भुजंग को जिसने हैं घेरा, संपूर्ण धर्म को बचाने के लिए ,वसुधा मैं अवतरित जगत्पाल, उस शिव छत्रपति की विजयदुन्दुभि गरज ने दो ।"
    शिवाजी राजे की प्रशंसा -
    येनाकर्णविकृष्टकार्मूकचलत्काण्डावलीकर्ति | प्रत्यर्थिक्षितीपालमौलिनिवहैरभ्यर्चि विश्वंभरा|| यस्यानेक वसुंधरा परिवृढ प्रोत्तुंग चूडामणे: | पुत्रत्त्वं समुपागत: शिव इति ख्यात पुराणो विभु: ||
    अर्थ- - जिन्होंने शत्रु तत्व करने वाले महिपाल जैसे गर्व से उन्मत हुए अनेक राजाओं के सिर विश्वंभर को अर्पण किए हो, ऐसे वसुंधरा को गौरवान्वित करने वालों में, उत्तुंग एवं श्रेष्ठ पुत्र, शिव के नाम से जाने जाने वाले पुराणों में वर्णित प्रभु पैदा हुए I महाशुरवीर लोगों के राज्य के स्वामी , पर्वतों (हिमालय) की तरह, पुराणों में वर्णित पुरुष श्रेष्ठ शिव जैसे शिवाजी सबसे महान राजा शाहजी राजा के यहां बेटा बनकर पैदा हुआ।
    शहाजी राजे स्तुती-
    भृशबदान्वयसिन्धू सुधाकर: प्रथितकीर्तिरूदारपराक्रम:|
    अभवतर्थकलासु विशारदो
    जगति शाहनृप: क्षितिवासव: ||
    अर्थ- - सर्वशक्तिमान, पराक्रमी, पृथ्वी पर सबसे बड़ा राजा, या वास्तविक शिव का अवतार, उदार और पराक्रमी, और अर्थशास्त्र और राजनीति जैसे विभिन्न गुणों का संगम, यह नर श्रेष्ठ राजा गुणों के सागर में चंद्रमा के समान शोभित हो रहा था। इस तरह के सिंधु सुधा जैसे परम पराक्रमशाली , शक्तिशाली, कर्तृत्ववान,उदार शाहजी राजा बन गए.
    क्या आपको भी लगता है कि हमें भी हमारे बालकों को जैसे श्री जीजा माता जी ने शंभू महाराज को तैयार किया, तैयार करना चाहिए।
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