क्या दोस्तों आपको पता है गुरु अमरदास सिखों के तीसरे गुरु द्वारा बताई गई बातें आज भी हमारे जीवन में उतनी ही उपयोगी है।
चलिए आपको भारत के गौरवशाली इतिहास में लेकर चलते हैं, जिसे जानकर आपको काफी गर्व होगा।
सबसे पहले आपको लेकर चलते हैं सन 1479 मैं Iजी हां गुरु अमर दास जी का जन्म 5 मई 1479 हुआ था, वे सिख धर्म के दस गुरुओं में से तीसरे थे और 26 मार्च 1552 को 73 वर्ष की आयु में सिख गुरु बन गए, जो कि पहले एक वैष्णव थे। उनका देहांत 1 सितंबर 1574 को हुआ था।
गुरु अमर दास जी ने आध्यात्मिक खोज के साथ-साथ एक नैतिक दैनिक जीवन पर जोर दिया। इन दोनों की हमारे जीवन में अत्यंत आवश्यकता है क्योंकि काफी सारे सुधारक ऐसे हो गए हैं जिन्होंने सिर्फ नैतिक जीवन की बात की है या तो सिर्फ आध्यात्मिक जीवन की ही बात की है। लेकिन व्यवहार में नैतिकता का आचरण अति आवश्यक है तभी आपकी आध्यात्मिक जीवन साधना ठीक हो पाएगी।
उन्होंने अपने अनुयायियों को भोर से पहले उठने, स्नान करने और फिर एकांत में ध्यान करने के लिए प्रोत्साहित किया। एक अच्छे भक्त को सच्चा होना चाहिए, अपने मन को नियंत्रण में रखना चाहिए, खाने पर नियंत्रण करना चाहिए, धर्मपरायण पुरुषों की संगति करना चाहिए, प्रभु की आराधना करनी चाहिए, ईमानदार जीवन जीना चाहिए, सत पुरुषों की सेवा करनी चाहिए, दूसरे के धन की लालच नहीं करनी चाहिए और दूसरों पर कभी अन्याय नहीं करना चाहिए ।
वह एक सुधारक भी थे, महिलाओं के पर्दा प्रथा के साथ-साथ सती प्रथा को भी हतोत्साहित करते थे।
उन्होंने कभी भी अन्याय को सहन करना स्वीकारा नहीं, अतः उन्होंने हमेशा क्षत्रियों को यह सीख दी कि आपका कर्तव्य है अन्याय के सामने लड़ना, अच्छे लोगों की रक्षा करना और यही आपका धर्म है।सोचने वाली बात यह है कि काश हमारे उस जमाने के क्षत्रियों ने उनकी इस सीख का पालन किया होता तो भारत देश काफी हद तक गुलामी की बेड़ियों से मुक्त हो सकता था।
गुरु अमर दास जी ने अपने शिष्यों को बताया कि आपको अपनी आय में से दसवां भाग ईश्वर के लिए निकालना है । इस पद्धति की वजह से आज भी सिख समुदाय में आपको भिखारी नजर नहीं आएगा।
गुरु अमर दास सिख धर्म के एक महत्वपूर्ण प्रर्वतक थे, जिन्होंने प्रशिक्षित पादरियों की नियुक्ति करके मांजी प्रणाली की शुरुआत की।अपने धर्म का अपने जीवन के द्वारा प्रचार करने के हेतु ऐसे प्रशिक्षित सीखो की व्यवस्था उन्होंने चालू की जो आज भी मौजूद है।
उन्होंने एक पोथी (पुस्तक) में भजन लिखे और संकलित किए जिसने अंततः आदिग्रंथ बनाने में मदद की।
गुरु अमर दासजी ने बच्चे के नामकरण, विवाह , और अंतिम संस्कार, के साथ-साथ दीवाली, माघी और वैशाखी जैसे त्योहारों के मण्डल और उत्सवों के अभ्यास के लिए सिख अनुष्ठानों को स्थापित करने में मदद की। उन्होंने सिख तीर्थयात्रा के केंद्रों की स्थापना की, और स्वर्ण मंदिर के लिए साइट को चुना।
गुरु अमरदास ने लंगर (फ्री किचन) को समुदाय की सेवा के लिए और सिखों के धर्मार्थों का प्रसार करने के लिए एक संस्था के रूप में विकसित किया। इसके अलावा, उसने सभी के लिए फ्री किचन में खाना अनिवार्य कर दिया, इससे पहले कि वह गुरु से मिल सके या मंडली में शामिल हो सके। उनका निर्देश एक कहावत बन गया - पहिले पंगत, पीछे संगत यानी पहले कम्यूनिटी किचन में भोजन करें और फिर मंडली में शामिल हों।
गुरु अमरदास जी के बढ़ते हुए प्रभाव को देखकर उनसे मिलने के लिए बादशाह अकबर और हरिपुर (कांगड़ा पहाड़ियों) के राजा उन्हें मिलने आए । उन्होंने लंगर परंपरा का पालन किया और फ्री किचन में एक पंक्ति में बैठ आम लोगों के साथ भोजन किया। यानी बड़े से बड़े राजा को भी उनके तेज ने प्रभावित किया था।
जब अकबर ने गुरु से रसोई घर के रखरखाव के लिए भूमि की पेशकश की, तब गुरु ने यह कहते हुए इसे स्वीकार नहीं किया कि यह एक सिख संस्थान है और इसे शिष्यों के प्रसाद और सेवाओं द्वारा हि चलना चाहिए।
अतः एसा समज सकते हैं , अगर आपको कुछ करना है तो पहले हमारे विचारो को स्वीकारें। कितना तेज , संपूर्ण भारत के शासक अकबर को यह कहना। कितनी तेजस्वी वृत्ति जिसने सामने से आई हुई मदद को हंसते-हंसते प्यार से इंकार कर दिया। कितना खुद विश्वास ,अपने गुरु पर अपने गुरु की वाणी पर।
क्या आपको भी लगता है कि गुरु अमरदास जी का जीवन और विचार आज भी आपके जीवन में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं।
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